Image source google |
युद्ध तो नवंबर 1918 में समाप्त हो गया था, लेकिन घर वापिस लौटने वाले संक्रमित सैनिकों के साथ यह वायरस भी अन्य क्षेत्रों में फैलता गया। इस बीमारी की वजह से बहुत सारे लोग मारे गए। माना जाता है कि स्पेनिश फ्लू से पांच से दस करोड़ के बीच लोग मारे गए थे।
दुनिया में उसके बाद भी कई महामारियां फैलीं लेकिन इतनी घातक और व्यापक कोई और महामारी नहीं रही। फिलहाल जब दुनिया में COVID-19 का प्रकोप सुर्खियों मे है, तो हम नजर डाल रहे हैं 100 साल पहले फैले स्पेनिश फ्लू के कारण पैदा हुई स्थिति पर, ताकि आप जान सकें कि उस महामारी से हमने क्या सबक सीखे थे। COVID-19 से मरने वाले कई लोग एक प्रकार के निमोनिया का शिकार हुए हैं जो वायरस से लड़ने में कमजोर हो चुके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर हावी हो जाता है।
COVID-19 और स्पेनिश फ्लू के बीच यह एक समानता है, हालांकि स्पेनिश फ्लू की तुलना में COVID-19 से संक्रमित लोगों की मृत्यु दर काफी कम है। अभी तक इस बीमारी से मरने वाले लोगों में अधिकांश बूढ़े लोग हैं या ऐसे लोग जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर थी। ऐसे लोगों में संक्रमण भी आसानी से हुआ और उन्हें निमोनिया हो गया जिसका सीधा असर उनके फेफड़ों की क्षमता पर पड़ा
जब स्पेनिश फ्लू फैला था तब दुनिया में हवाई यात्रा की शुरुआत बस हुई थी। यह बड़ी वजह थी कि उस समय दुनिया के दूसरे देश बीमारी के प्रकोप से अछूते रहे। उस समय बीमारी रेल और नौकाओं में यात्रा करने वाले यात्रियों के जरिए ही फैली इसलिए उसका प्रसार भी धीमी गति से हुआ। कई जगहों पर स्पेनिश फ्लू को पहुंचने में कई महीने और साल लग गए, जबकि कुछ जगहों पर यह बीमारी लगभग पहुंची ही नहीं। उदाहरण के तौर पर, अलास्का। इसकी वजह थी वहां के लोगों द्वारा बीमारी को दूर रखने के लिए अपनाए गए कुछ बुनियादी तरीके।
अलास्का के ब्रिस्टल बे इलाके में यह बीमारी नहीं फैली। वहां के लोगों ने स्कूल बंद कर दिए, सार्वजानिक जगहों पर भीड़ के इकट्ठा होने पर रोक लगा दी और मुख्य सड़क से गांव तक पहुंचने बाले रास्ते बंद कर दिए। अब कोरोना वायरस को रोकने के लिए उसी तरह के मगर आधुनिक तरीके चीन और इटली में अपनाए जा रहे हैं, जहां लोगों की आवाजाही और उनके भीड़ वाली जगहों जाने को नियंत्रित किया जा रहा है।
डॉक्टर स्पेनिश फ्लू को 'इतिहास का सबसे बड़ा जनसंहार' बताते हैं। बात केवल यह नहीं है कि इतनी बड़ी संख्या में लोग इससे मारे गए बल्कि यह कि इसका शिकार हुए कई लोग जवान और पूरी तरह स्वस्थ थे। आमतौर पर स्वस्थ लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता फ्लू से निपटने में सफल रहती है, लेकिन फ्लू का यह स्वरूप इतनी तेजी से हमला करता था कि शरीर की प्रतिरोधक शक्ति पस्त हो जाती. इससे सायटोकिन स्टॉर्म नामक प्रतिक्रिया होती है और फेफड़ों में पानी भर जाता है जिससे यह बीमारी अन्य लोगों में भी फैलती है। उस समय बूढ़े लोग इसका शिकार कम हुए क्योंकि संभवत: वो 1830 में फैले इस फ्लू के एक दूसरे स्वरूप से जूझ चुके थे। फ्लू की वजह से विश्व के विकसित देशों में सार्वजानिक स्वास्थ्य प्रणाली में काफी विकास हुआ, क्योंकि सरकारों और वैज्ञानिकों को अहसास हुआ की महामारियां बहुत तेजी से फैलेंगी।
कोरोना वायरस से ज्यादा खतरा बूढ़े और पहले से बीमार लोगों को है। हालांकि इस बीमारी में मृत्यु दर कम है किंतु 80 से अधिक उम्र के लोगों में यह सबसे अधिक है। स्पेनिश फ्लू विश्व में तब फैला जब वह प्रथम युद्ध से उबर ही रहा था और उस समय संसाधन सैन्य कार्यों में लगा दिए गए थे और सार्वजानिक स्वास्थ्य प्रणाली की परिकल्पना अधिक विकसित नहीं थी। कई जगहों पर केवल मध्य और उच्च वर्ग के लोग ही डॉक्टरों से इलाज करवाने की क्षमता रखते थे